दशम श्लोक, प्रवचन

यहाँ अगला श्लोक कहते हैं..... सर्वात्मत्वमिति स्फुटीकृतमिदं यस्मादमुष्मिंस्तवे तेनास्य श्रवणात्तदर्थमननाद्ध्यानाच्च सङ्कीर्तनात् । सर्वात्मत्वमहाविभूतिसहितं स्यादीश्वरत्वं स्वतः सिद्ध्येतत्पुनरष्धा परिणतं चैश्वर्यमव्याहतम् ।।१०।। इस स्तोत्र में शुरू से अन्त तक आपको बताया गया कि एक सत्ता है, वह प्रकाश रूपा है । आपका ही मूलस्वरूप है । आप सर्वात्मा हैं । हमने कई बार बता दिया कि घड़े का जो प्रतिबिम्ब रूप सूर्य है वह अपने स्वरूप में पहुंचेगा तो सभी घड़ो में अपने को देखेगा । इस स्तोत्र में आपका सर्वात्म रूप प्रकट किया गया है । "सर्वात्मत्वमिति स्फुटीकृतम्" इसलिये इसमें आपका सर्वात्म रूप स्पष्ट कर दिया गया है । विलक्षण एवं कृपापूर्ण शब्दों के द्वारा एक तत्त्व को बुद्धि में प्रतिष्ठित किया गया है । इसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं है । सारा जगत दर्पण के समान दिखने वाले नगर के समान मिथ्या है । इसलिए "तेनास्य श्रवणात्" जो इसका श्रद्धापूर्वक श्रवण करेगा । ...